Miles to go...

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Ramblings by Jaya Jha

Tuesday, February 01, 2005

गीतों को कैसे जीती हूँ मैं

ऐ दुनिया! काश तुझे बता पाती
कि गीतों को कैसे जीती हूँ मैं ।
कैसे इस श्रापग्रस्त धरती पर होकर
भी देवों का अमृत पीती हूँ मैं ।

कितना बुरा लगता है मुझे
कि खुशियाँ नहीं बाँट सकती अपनी,
भाग्य के पक्षपात पर भी आश्चर्य होता है,
ज़िन्दग़ी अजीब होती है कितनी ।

पर फिर भी अगर मेरी एक मुस्कान,
या एक हँसी पहुँचती है तुझतक,
गा ले एक छोटा-सा गीत तू भी खुश होकर,
देखूँ क्या गूँज आती है मुझतक?

स्वार्थी ! स्वार्थी ! मेरा मन मुझे ही
धिक्कारता है पर घोंट लेती हूँ मैं ।
ऐ दुनिया! काश तुझे बता पाती
कि गीतों को कैसे जीती हूँ मैं ।

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1 Comments:

  • At Mon Feb 21, 04:42:00 PM 2005, Blogger Jaya said…

    Since I am removing the Haloscan Comments, I am copy-pasting the comments I got on this post here.

    --

    माँ सरस्वती की कृपा से, गीतों के आगार में।
    विवरण आवश्यक नहीं, इस जटिल संसार में।
    Prem Piyush | Email | Homepage | 02.01.05 - 6:00 pm | #

     

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