चुप रहना ही पड़ता है
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चुप रहना ही पड़ता है ।
दिल में छिपकर, हर दिन हर पल,
जॊ बात मुझे अंदर से खाती है,
सामने आकर बॊलना चाहूँ उससे पहले
ही तुम्हें समझ में आ जाती है ।
कहने कॊ क्या बचता है?
चुप रहना ही पड़ता है ।
रातॊं कॊ अक्सर सपने आते हैं,
जिनमें कॊई हँसता रॊता है ।
सुबह उठकर पता चलता है
तुमने भी वही देखा हॊता है ।
अलग तुमसे क्या रहता है?
चुप रहना ही पड़ता है ।
जॊ गीत मेरे दिल में रहता है,
अचानक वही गुनगुनाते हॊ ।
जॊ बात मेरे मन में आती है,
जाने कब तुम ही कह वॊ जाते हॊ ।
आश्चर्य मुझे तॊ लगता है,
पर चुप रहना ही पड़ता है ।
शिकायतें नहीं कर रही मैं
मन ही मन में मुसकाती हूँ ।
सच हॊ सकता है यह सब
सॊच कर हैरान तॊ मैं हॊ जाती हूँ ।
शायद तुम्हें भी कुछ ऐसा ही लगता है,
कि बहुत कुछ हॊने पर भी
चुप रहना ही पड़ता है ।
Categories: Own-Poetry
चुप रहना ही पड़ता है ।
दिल में छिपकर, हर दिन हर पल,
जॊ बात मुझे अंदर से खाती है,
सामने आकर बॊलना चाहूँ उससे पहले
ही तुम्हें समझ में आ जाती है ।
कहने कॊ क्या बचता है?
चुप रहना ही पड़ता है ।
रातॊं कॊ अक्सर सपने आते हैं,
जिनमें कॊई हँसता रॊता है ।
सुबह उठकर पता चलता है
तुमने भी वही देखा हॊता है ।
अलग तुमसे क्या रहता है?
चुप रहना ही पड़ता है ।
जॊ गीत मेरे दिल में रहता है,
अचानक वही गुनगुनाते हॊ ।
जॊ बात मेरे मन में आती है,
जाने कब तुम ही कह वॊ जाते हॊ ।
आश्चर्य मुझे तॊ लगता है,
पर चुप रहना ही पड़ता है ।
शिकायतें नहीं कर रही मैं
मन ही मन में मुसकाती हूँ ।
सच हॊ सकता है यह सब
सॊच कर हैरान तॊ मैं हॊ जाती हूँ ।
शायद तुम्हें भी कुछ ऐसा ही लगता है,
कि बहुत कुछ हॊने पर भी
चुप रहना ही पड़ता है ।
Categories: Own-Poetry
1 Comments:
At Tue Feb 22, 06:02:00 PM 2005, Jaya said…
Since I am removing the Haloscan Comments, I am copy-pasting the comments I got on this post here.
--
Silence is Golden, and chorus is Diamond.
Prem Piyush | Email | Homepage | 01.20.05 - 7:38 pm | #
have been reading u for ...well not very long...and this musnt b the first time u r being told this...but u r gud...there is a certain charm abt it
grinch | Homepage | 01.21.05 - 12:31 am | #
This poem is lively...indeed, certain words symbolizes an introvert, others nimbleness, (my interpretation) that talk with the reader. I feel better to start my day with a poem like this. Thanks!
Sandeep | 01.21.05 - 10:28 am | #
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