हम दो पल चुरा लें तो?
ज़िन्दग़ी ऐसे भागती जा रही है,
रुकने का उसको समय नहीं है ।
पर थोड़ी देर ज़िन्दग़ी को अपने घर बुला लें तो?
बारिश है, बाढ़ आ सकती है,
कमज़ोर है, जान जा सकती है ।
उससे पहले दो बार सावन के झूले झुला लें तो?
ज़िम्मेदारियाँ हैं हम पर कई तरह की,
कमी है हमारे पास समय की ।
पर इस भाग-दौड़ से भी हम दो पल चुरा लें तो?
Categories: Own-Poetry
रुकने का उसको समय नहीं है ।
पर थोड़ी देर ज़िन्दग़ी को अपने घर बुला लें तो?
बारिश है, बाढ़ आ सकती है,
कमज़ोर है, जान जा सकती है ।
उससे पहले दो बार सावन के झूले झुला लें तो?
ज़िम्मेदारियाँ हैं हम पर कई तरह की,
कमी है हमारे पास समय की ।
पर इस भाग-दौड़ से भी हम दो पल चुरा लें तो?
Categories: Own-Poetry
1 Comments:
At Tue Feb 22, 05:59:00 PM 2005,
Jaya said…
Since I am removing the Haloscan Comments, I am copy-pasting the comments I got on this post here.
--
Okey! you write poems.Good!! Wait just a second, I will comeback and read.
Prem Piyush | Email | 01.25.05 - 9:07 am | #
Good one....simple and small
vandy | Homepage | 01.29.05 - 6:01 pm | #
Post a Comment
<< Home