ताजमहल
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सदियों से मनाते आए हो
तुम यहाँ मोहब्बत का जश्न,
पर कोई तुममे से सुन ना सका
एक ख़ामोश मूक सा प्रश्न।
उपेक्षित कुछ पल इतिहास के
जो तुम्हारे सामने रखते हैं।
पर जिनकी कमज़ोर आवाज़ को
तुम्हारे कान नहीं सुन सकते हैं।
मैं मुमताज महल हूँ - हाँ वही
जिससे हर प्रेमिका दुनिया की,
ईर्ष्या रखती होगी सोचकर
ऐसी मिलें हमें खुशियाँ भी।
कहानी मारी सुनो आज
आज सच मेरा भी जानो
कान दे दो एक बार तो
पीछे फिर मानो ना मानो।
हरम खड़ा था - दूर होकर
चहल-पहल से इस दुनिया की।
उसमें बंद हज़ारों जैसी
मैं भी थी बस एक चिड़िया सी।
बादशाह की प्यारी थी तो
ज़्यादा रातें, कुछ ज़्यादा पल।
थोड़े ज़्यादा नौकर और फिर
मरने पर यह ताजमहल।
कर दूँ मैं क़ुर्बान सैकड़ों
आलीशान महल सब ऐसे।
प्यार अगर ऐसा मिल जाए
हों जिसमें हम एक-दूजे के।
बहुत बड़े का बड़ा-सा हिस्सा
संतोष नहीं वो दे पाता है।
छोटे से का पूर्ण अधिकार
खुशियाँ जैसी दे जाता है।
जश्न मनाओ मत पत्थर के
ताजमहल पर प्यार का तुम।
हाथों में ले हाथ कुटी में
स्वागत करो बहार का तुम।
सच्चा ताजमहल वो होगा
दे दिल जिसको बनायेंगे।
वो भी उस दिन जिस दिन दोनों
मिलकर एक हो जाएँगे।
नहीं बनाते हैं कारीगर
प्यार का कभी निशानियाँ।
बस लिख सकते वो बादशाहों
की बिगड़ी हुई कहानियाँ।
P.S. The comments on this are a pure coincidence :-)
Categories: Own-Poetry
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सदियों से मनाते आए हो
तुम यहाँ मोहब्बत का जश्न,
पर कोई तुममे से सुन ना सका
एक ख़ामोश मूक सा प्रश्न।
उपेक्षित कुछ पल इतिहास के
जो तुम्हारे सामने रखते हैं।
पर जिनकी कमज़ोर आवाज़ को
तुम्हारे कान नहीं सुन सकते हैं।
मैं मुमताज महल हूँ - हाँ वही
जिससे हर प्रेमिका दुनिया की,
ईर्ष्या रखती होगी सोचकर
ऐसी मिलें हमें खुशियाँ भी।
कहानी मारी सुनो आज
आज सच मेरा भी जानो
कान दे दो एक बार तो
पीछे फिर मानो ना मानो।
हरम खड़ा था - दूर होकर
चहल-पहल से इस दुनिया की।
उसमें बंद हज़ारों जैसी
मैं भी थी बस एक चिड़िया सी।
बादशाह की प्यारी थी तो
ज़्यादा रातें, कुछ ज़्यादा पल।
थोड़े ज़्यादा नौकर और फिर
मरने पर यह ताजमहल।
कर दूँ मैं क़ुर्बान सैकड़ों
आलीशान महल सब ऐसे।
प्यार अगर ऐसा मिल जाए
हों जिसमें हम एक-दूजे के।
बहुत बड़े का बड़ा-सा हिस्सा
संतोष नहीं वो दे पाता है।
छोटे से का पूर्ण अधिकार
खुशियाँ जैसी दे जाता है।
जश्न मनाओ मत पत्थर के
ताजमहल पर प्यार का तुम।
हाथों में ले हाथ कुटी में
स्वागत करो बहार का तुम।
सच्चा ताजमहल वो होगा
दे दिल जिसको बनायेंगे।
वो भी उस दिन जिस दिन दोनों
मिलकर एक हो जाएँगे।
नहीं बनाते हैं कारीगर
प्यार का कभी निशानियाँ।
बस लिख सकते वो बादशाहों
की बिगड़ी हुई कहानियाँ।
P.S. The comments on this are a pure coincidence :-)
Categories: Own-Poetry
2 Comments:
At Sat May 14, 04:15:00 PM 2005,
Prem Piyush said…
Jayaji,
Good poetry after so many days.
By the time check whether your website, the tiny mahal, exists or not. I am unable ot see that.
At Mon Jun 06, 10:44:00 PM 2005,
Anonymous said…
Excellent thought!
.A
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