Just Like That
मदिरालय में कब से बैठा,
पी न सका अबतक हाला,
यत्न सहित भरता हूँ, कोई
किंतु पलट देता प्याला;
मानव-बल के आगे निर्बल
भाग्य सुना विद्यालय में;
'भाग्य प्रबल, मानव निर्बल' का
पाठ पढ़ाती मधुशाला ।
जला हृदय की भट्ठी खींची
मैंने आँसू की हाला;
छलछल छलका करता इससे
पल-पल पलकों का प्याला;
आँखें आज बनी हैं साकी,
गाल गुलाबी पी होते;
कहो न विरही मुझको, मैं हूँ
चलती-फिरती मधुशाला।
(From Madhushala by Dr. Harivansha Rai Bachchan)
(Translation postponed)
Categories: Excerpts
1 Comments:
At Fri Mar 25, 04:03:00 PM 2005,
Prem Piyush said…
Jayaji,
Occasion of Holi and Madhushala khali! Anyway old hala bhi chalega ! Happy HOLI.
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