August 9th
Today is my official birthday (no - do not flood the comments with wishes, since it is only official and not the real one :-D)
And today Nagasaki Bombing completes its 60 years.
Today the arrest of Mahatma Gandhi and several other prominent Congress leaders for Quit India Movement completes its 63 years.
During the same movement on August 11th, seven young people were killed in an attempt to hoist the National Flag on Patna Secretariat. Was suddenly reminded of this play, which used to be performed in Navodaya - a nice read. It was a re-write of an original version by our then History teacher.
It is not exactly related to the above incident, but mentions them. And in the background there used to be 7 people standing in the same post as can be seen at the Martyr Memorial at Patna.
--
There are two characters in the play. Let me call them 'A' and 'B' for the sake of convenience.
Voiceover
वीरों करो प्रयाण अभय
भावी इतिहास तुम्हारा है।
ये नख़त अमाँ के बुझते हैं
सारा आकाश तुम्हारा है।
A
नहीं! पहले फ़ैसला हो जाए। फ़ैसले हक़ और अधिकार का। हिन्दू और मुसलमान का।
B
हाँ! होगा - अवश्य होगा, ज़रूर होगा। पूछो, पूछो इन शहीदों से इनका धर्म क्या है, पूछो इस रक़्त सनी मिट्टी से इसकी जाति क्या है। नहीं तो पूछो इस लहराते तिरंगे से - ये सब बताएगा। बताएगा कि इन जैसे कितने शहीदों की शहादत चढ़ी है इबादत का फूल बना कर इसे शान से फहराने की चाह में।
A
माफ़ करने मेरे भाई... मैं मुग़ालते में था। सच यही है।
B
दोस्त! क़सूर हिन्दू और मुसलमान का नहीं। क़सूर है ख़ुदग़र्ज़ी का। अगर मुसलमानों का प्रेम, राजपूतों की क़ुर्बानी, मराठों की दिलेरी, सिक्खों का साहस, जाटों की जाँबाज़ी, बुन्देलों की बहादुरी और पहाड़ियों की वफ़ादारी एक होती तो दुनिया में किसी की मज़ाल नहीं थी कि हिन्दुस्तान की और टेढ़ी भौंहों से देख भी सकता।
A
जाग उठा है हिमालय... याद रखना...
A+B
न सँभलोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्ताँ वालों
तुम्हारी दासता तक भी न होगी दास्तानों में।
(फ़ायर की आवाज़... दोनों टर जाते हैं)
Voiceover
अरे, ख़ौफ़ क्यों करते हो इन तूफ़ानों का
तूफ़ानों का इतने ही डर होता
तो किश्तियाँ नहीं चला करतीं समंदर में।
A+B
उरूज़-ए-क़ामयाबी पर कभी हिन्दोस्ताँ होगा
रिहा सैय्याद के हाथों से अपना आशियाँ होगा।
कभी वो दिन भी आएगा जब अपना राज़ देखेंगे
जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमाँ होगा।
(फ़ायर की आवाज़)
पटाखा... हा! हा! हा!
हमें क़ायर समझने की भूल छोड़ दे ज़ालिम। अरे शहादत का जज़्बा तो हमारी रगों में है।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।
(तभी फ़ायर की आवाज़ - A को गोली लग जाती है- गिरता है)
B
नहीं दोस्त! ऐसा नहीं हो सकता।...
A
तेरा सुहाग अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहें।
(In Background the song "ऐ मेरे वतन के लोगों..."is played)
Voiceover
विश्व व्यवस्था के ठेकेदारों ज़ालिम अँग्रेज़ों! शांति के आराधक हम भीरतीयों के धैर्य की परीक्षा लेनी छोड़ दो। नहीं तो हर एक हिन्दुस्तानी के मुख से आवाज़ निकलेगी -
कहीं ऐसा न हों कि धैर्य के हिमखंट गल जाएँ
सहज शालीनता के स्वर शरारों में बदल जाएँ
जिन्हें विद्वेष मेरे हिन्द से है कहो उनसे
वो ख़ुद ही मेरे देश से बाहर निकल जाएँ।
And today Nagasaki Bombing completes its 60 years.
Today the arrest of Mahatma Gandhi and several other prominent Congress leaders for Quit India Movement completes its 63 years.
During the same movement on August 11th, seven young people were killed in an attempt to hoist the National Flag on Patna Secretariat. Was suddenly reminded of this play, which used to be performed in Navodaya - a nice read. It was a re-write of an original version by our then History teacher.
It is not exactly related to the above incident, but mentions them. And in the background there used to be 7 people standing in the same post as can be seen at the Martyr Memorial at Patna.
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There are two characters in the play. Let me call them 'A' and 'B' for the sake of convenience.
Voiceover
वीरों करो प्रयाण अभय
भावी इतिहास तुम्हारा है।
ये नख़त अमाँ के बुझते हैं
सारा आकाश तुम्हारा है।
A
नहीं! पहले फ़ैसला हो जाए। फ़ैसले हक़ और अधिकार का। हिन्दू और मुसलमान का।
B
हाँ! होगा - अवश्य होगा, ज़रूर होगा। पूछो, पूछो इन शहीदों से इनका धर्म क्या है, पूछो इस रक़्त सनी मिट्टी से इसकी जाति क्या है। नहीं तो पूछो इस लहराते तिरंगे से - ये सब बताएगा। बताएगा कि इन जैसे कितने शहीदों की शहादत चढ़ी है इबादत का फूल बना कर इसे शान से फहराने की चाह में।
A
माफ़ करने मेरे भाई... मैं मुग़ालते में था। सच यही है।
B
दोस्त! क़सूर हिन्दू और मुसलमान का नहीं। क़सूर है ख़ुदग़र्ज़ी का। अगर मुसलमानों का प्रेम, राजपूतों की क़ुर्बानी, मराठों की दिलेरी, सिक्खों का साहस, जाटों की जाँबाज़ी, बुन्देलों की बहादुरी और पहाड़ियों की वफ़ादारी एक होती तो दुनिया में किसी की मज़ाल नहीं थी कि हिन्दुस्तान की और टेढ़ी भौंहों से देख भी सकता।
A
जाग उठा है हिमालय... याद रखना...
A+B
न सँभलोगे तो मिट जाओगे ऐ हिन्दोस्ताँ वालों
तुम्हारी दासता तक भी न होगी दास्तानों में।
(फ़ायर की आवाज़... दोनों टर जाते हैं)
Voiceover
अरे, ख़ौफ़ क्यों करते हो इन तूफ़ानों का
तूफ़ानों का इतने ही डर होता
तो किश्तियाँ नहीं चला करतीं समंदर में।
A+B
उरूज़-ए-क़ामयाबी पर कभी हिन्दोस्ताँ होगा
रिहा सैय्याद के हाथों से अपना आशियाँ होगा।
कभी वो दिन भी आएगा जब अपना राज़ देखेंगे
जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमाँ होगा।
(फ़ायर की आवाज़)
पटाखा... हा! हा! हा!
हमें क़ायर समझने की भूल छोड़ दे ज़ालिम। अरे शहादत का जज़्बा तो हमारी रगों में है।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ू-ए-क़ातिल में है।
(तभी फ़ायर की आवाज़ - A को गोली लग जाती है- गिरता है)
B
नहीं दोस्त! ऐसा नहीं हो सकता।...
A
तेरा सुहाग अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहें।
(In Background the song "ऐ मेरे वतन के लोगों..."is played)
Voiceover
विश्व व्यवस्था के ठेकेदारों ज़ालिम अँग्रेज़ों! शांति के आराधक हम भीरतीयों के धैर्य की परीक्षा लेनी छोड़ दो। नहीं तो हर एक हिन्दुस्तानी के मुख से आवाज़ निकलेगी -
कहीं ऐसा न हों कि धैर्य के हिमखंट गल जाएँ
सहज शालीनता के स्वर शरारों में बदल जाएँ
जिन्हें विद्वेष मेरे हिन्द से है कहो उनसे
वो ख़ुद ही मेरे देश से बाहर निकल जाएँ।
Categories: Literature
2 Comments:
At Fri Aug 12, 11:12:00 AM 2005, Anonymous said…
When is the real one?
At Fri Aug 26, 03:25:00 PM 2005, Anonymous said…
"Today is my official birthday (no - do not flood the comments with wishes, since it is only official and not the real one :-D)"
looks like you are from Bihar :)
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