ज़िन्दग़ी! दो पल सवाल तेरे मैं नहीं सुनूँगी
Yeah, looks like I shall soon be in a position to come up with a complete book on "Zindagi ke Sawaal". :-)
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ज़िन्दग़ी! दो पल सवाल तेरे मैं नहीं सुनूँगी।
हाथों में लेकर अपनी क़िस्मत,
सर उठाने की करूँगी हिम्मत।
और कभी ले जाए जहाँ चाहे तू मुझे,
दे पल तो अपना स्वप्न देश मैं ही चुनूँगी।
ज़िन्दग़ी! दो पल सवाल तेरे मैं नहीं सुनूँगी।
बताकर स्वप्न व यथार्थ का अंतर,
बरसाती रह तू शोले मुझपर,
पर मुझे रोकना नहीं मैं दो पल
कुछ सपने अपने कहीं बुनूँगी।
ज़िन्दग़ी! दो पल सवाल तेरे मैं नहीं सुनूँगी।
Categories: Own-Poetry
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ज़िन्दग़ी! दो पल सवाल तेरे मैं नहीं सुनूँगी।
हाथों में लेकर अपनी क़िस्मत,
सर उठाने की करूँगी हिम्मत।
और कभी ले जाए जहाँ चाहे तू मुझे,
दे पल तो अपना स्वप्न देश मैं ही चुनूँगी।
ज़िन्दग़ी! दो पल सवाल तेरे मैं नहीं सुनूँगी।
बताकर स्वप्न व यथार्थ का अंतर,
बरसाती रह तू शोले मुझपर,
पर मुझे रोकना नहीं मैं दो पल
कुछ सपने अपने कहीं बुनूँगी।
ज़िन्दग़ी! दो पल सवाल तेरे मैं नहीं सुनूँगी।
Categories: Own-Poetry
1 Comments:
At Sat Jul 02, 12:59:00 PM 2005, Vikash said…
brilliant.
I loved it.
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