ज़िन्दग़ी ने कुछ सवाल खड़े किए थे
ज़िन्दग़ी ने कुछ सवाल खड़े किए थे।
विनाश आसानी से दिख रहा था,
अस्तित्व मानवता का मिट रहा था।
पर उन लाशों और खून सनी धरती पर ही
किसी को फूल बहार के दिए थे।
ज़िन्दग़ी ने कुछ सवाल खड़े किए थे।
अनजान सा पथ था, रास्ता मुश्किल था,
प्रतियोगी आगे, डर जाता ये दिल था।
पर उनपर ही आगे बढ़कर मैंने
सपनों के किरदार बड़े किए थे।
ज़िन्दग़ी ने कुछ सवाल खड़े किए थे।
ऊपर उठी मैं कुछ दृश्य रह गए पीछे,
दब गई वो दुनिया एक चमकती परत के नीचे।
आज याद आया तो सोचने लगी मैं, किसने
पैबंद हटा हीरे कई आकार के दिए थे।
ज़िन्दग़ी ने कुछ सवाल खड़े किए थे।
Categories: Own-Poetry
विनाश आसानी से दिख रहा था,
अस्तित्व मानवता का मिट रहा था।
पर उन लाशों और खून सनी धरती पर ही
किसी को फूल बहार के दिए थे।
ज़िन्दग़ी ने कुछ सवाल खड़े किए थे।
अनजान सा पथ था, रास्ता मुश्किल था,
प्रतियोगी आगे, डर जाता ये दिल था।
पर उनपर ही आगे बढ़कर मैंने
सपनों के किरदार बड़े किए थे।
ज़िन्दग़ी ने कुछ सवाल खड़े किए थे।
ऊपर उठी मैं कुछ दृश्य रह गए पीछे,
दब गई वो दुनिया एक चमकती परत के नीचे।
आज याद आया तो सोचने लगी मैं, किसने
पैबंद हटा हीरे कई आकार के दिए थे।
ज़िन्दग़ी ने कुछ सवाल खड़े किए थे।
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1 Comments:
At Sat Jul 02, 12:59:00 PM 2005, Vikash said…
aap dharmveer bharti se prabhavit ho.
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