Miles to go...

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Ramblings by Jaya Jha

Monday, February 21, 2005

ज़िन्दग़ी ने कुछ सवाल खड़े किए थे

ज़िन्दग़ी ने कुछ सवाल खड़े किए थे।

विनाश आसानी से दिख रहा था,
अस्तित्व मानवता का मिट रहा था।
पर उन लाशों और खून सनी धरती पर ही
किसी को फूल बहार के दिए थे।

ज़िन्दग़ी ने कुछ सवाल खड़े किए थे।

अनजान सा पथ था, रास्ता मुश्किल था,
प्रतियोगी आगे, डर जाता ये दिल था।
पर उनपर ही आगे बढ़कर मैंने
सपनों के किरदार बड़े किए थे।

ज़िन्दग़ी ने कुछ सवाल खड़े किए थे।

ऊपर उठी मैं कुछ दृश्य रह गए पीछे,
दब गई वो दुनिया एक चमकती परत के नीचे।
आज याद आया तो सोचने लगी मैं, किसने
पैबंद हटा हीरे कई आकार के दिए थे।

ज़िन्दग़ी ने कुछ सवाल खड़े किए थे।

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