ऐसा तो नहीं हो सकता
नहीं, ऐसा तो नहीं हो सकता
कि आँसू, खून और विध्वंस मिलकर
कभी नहीं देते भयानक सपने तुम्हें
और तांडव नहीं करते हों दिलपर।
नहीं, ऐसा तो नहीं हो सकता
कि कभी सिहरता न हो तुम्हारा बदन।
कभी उलटी न आती हो घिन से,
कभी चीखता नहीं हो अपना ही मन!
नहीं, ऐसा तो नहीं हो सकता
कि कभी तुम्हें ऐसा लगा नहीं
कि तुमने बहुत ग़लत किया है
और इंसान तुम्हारे अंदर जगा नहीं।
नहीं, ऐसा तो नहीं हो सकता
कि तुमने कभी जाना ही नहीं
कि दर्द क्या होता है इंसानों का
और ग़लती को तुमने माना नहीं।
फिर कैसे तुम सत्ता के मद में
रचाते रहे हो खेल ये भयंकर?
कैसे आते रहे दुनिया में
गजनी, हिटलर या बुश बनकर?
Categories: Own-Poetry
कि आँसू, खून और विध्वंस मिलकर
कभी नहीं देते भयानक सपने तुम्हें
और तांडव नहीं करते हों दिलपर।
नहीं, ऐसा तो नहीं हो सकता
कि कभी सिहरता न हो तुम्हारा बदन।
कभी उलटी न आती हो घिन से,
कभी चीखता नहीं हो अपना ही मन!
नहीं, ऐसा तो नहीं हो सकता
कि कभी तुम्हें ऐसा लगा नहीं
कि तुमने बहुत ग़लत किया है
और इंसान तुम्हारे अंदर जगा नहीं।
नहीं, ऐसा तो नहीं हो सकता
कि तुमने कभी जाना ही नहीं
कि दर्द क्या होता है इंसानों का
और ग़लती को तुमने माना नहीं।
फिर कैसे तुम सत्ता के मद में
रचाते रहे हो खेल ये भयंकर?
कैसे आते रहे दुनिया में
गजनी, हिटलर या बुश बनकर?
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